जब कोई स्कूल में गाली देता था
तो टीचर जी डॉट लगती थी
इसी गाली गलौज वाली भाषा के कारण
झुग्गी झोपड़ीयो के बच्चों संग
खेलने की पापा की पाबंदी थीं
कॉलेज में भी याद है
गांव खेड़े से आये बच्चें
हमसे थोड़ा दूर दूर
और हम उनसे थोड़ा दूर दूर रेहते थे
बीचमें कहीं भाषा की काँच सी एक दीवार थी
अक्सर राह चलते
स्कूल कॉलेज दफ्तरों में
इन सबको एक ही नाम से
पुकारते देखा है
" गवार "
पर आज ट्वीटर पर
बेतकल्लुफी से जो रोज़ गालियां दे रहे है
उनको क्या कहें
हम यहां सिर्फ उनकी बात कर रहे है
जिनकी ये आदत नहीं बोलचाल में शामिल नहीं
पढ़े लिखे हाई सोसाइटी के लोग
जो अपने ड्राइवर और कामवालियों को
हीन नज़र से देखते है
वही टशन दिखाने को
आपनी ट्वीट्स को गलियों से सजाते हैं
आज एक ट्वीट पे नज़र पड़ी
फिर कुछ भूला याद आया
पढ़े मुस्कुराये और कुछ बुदबुदाये // " गवार " //
आज समझे जो अनपढ़ है वो नही
जो पढ़ लिखकर भी सब्भय न हो वो है - " गवार "
तो टीचर जी डॉट लगती थी
इसी गाली गलौज वाली भाषा के कारण
झुग्गी झोपड़ीयो के बच्चों संग
खेलने की पापा की पाबंदी थीं
कॉलेज में भी याद है
गांव खेड़े से आये बच्चें
हमसे थोड़ा दूर दूर
और हम उनसे थोड़ा दूर दूर रेहते थे
बीचमें कहीं भाषा की काँच सी एक दीवार थी
अक्सर राह चलते
स्कूल कॉलेज दफ्तरों में
इन सबको एक ही नाम से
पुकारते देखा है
" गवार "
पर आज ट्वीटर पर
बेतकल्लुफी से जो रोज़ गालियां दे रहे है
उनको क्या कहें
हम यहां सिर्फ उनकी बात कर रहे है
जिनकी ये आदत नहीं बोलचाल में शामिल नहीं
पढ़े लिखे हाई सोसाइटी के लोग
जो अपने ड्राइवर और कामवालियों को
हीन नज़र से देखते है
वही टशन दिखाने को
आपनी ट्वीट्स को गलियों से सजाते हैं
आज एक ट्वीट पे नज़र पड़ी
फिर कुछ भूला याद आया
पढ़े मुस्कुराये और कुछ बुदबुदाये // " गवार " //
आज समझे जो अनपढ़ है वो नही
जो पढ़ लिखकर भी सब्भय न हो वो है - " गवार "
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