मैं नारी हु
एक पहचान चाहती हूं
आपके सुबह के चाय के प्याली के साथ
एक प्याली आपनी चाहती हूं
हर ख्याब है साझा आप संग
साथ ही गिरती और सम्भालती हूं
दरवाजे के तख्त पे आपना नाम नहीं
आपके दिल में अपना मुकाम चाहती हूं
मेरी पोशाक है मेरी रुचि
न मेरी परिभाषा न ही सारांश
मेरे किरदार पे उठती उंगलिया नहीं
आपके आँखों में थोड़ा सम्मान चाहती हूं
बिस्तर में सजी हुई
मैं कोई चदर या सिरहाना नहीं
आपने हर समर्पण से
आपके रूह से मिल जाना चाहती हूं
मर्यादा में न बांधो हमे
बेटी बहू में न बाटो हमें
घर-समाज, मान-मर्य्यादा रखवाली हम कर लेंगे
हमारी इज़्ज़त आप न तार तार करो चाहती हूं
हमपे भी आप अभिमान करो
आपनी एक ऐसी छवि चाहती हूं
मैं नारी हु , हाँ मैं नारी हु
गर्व से केहने का सौभाग्य चाहती हूं ...
एक पहचान चाहती हूं
आपके सुबह के चाय के प्याली के साथ
एक प्याली आपनी चाहती हूं
हर ख्याब है साझा आप संग
साथ ही गिरती और सम्भालती हूं
दरवाजे के तख्त पे आपना नाम नहीं
आपके दिल में अपना मुकाम चाहती हूं
मेरी पोशाक है मेरी रुचि
न मेरी परिभाषा न ही सारांश
मेरे किरदार पे उठती उंगलिया नहीं
आपके आँखों में थोड़ा सम्मान चाहती हूं
बिस्तर में सजी हुई
मैं कोई चदर या सिरहाना नहीं
आपने हर समर्पण से
आपके रूह से मिल जाना चाहती हूं
मर्यादा में न बांधो हमे
बेटी बहू में न बाटो हमें
घर-समाज, मान-मर्य्यादा रखवाली हम कर लेंगे
हमारी इज़्ज़त आप न तार तार करो चाहती हूं
हमपे भी आप अभिमान करो
आपनी एक ऐसी छवि चाहती हूं
मैं नारी हु , हाँ मैं नारी हु
गर्व से केहने का सौभाग्य चाहती हूं ...
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