एक चंचल झरने से मैं
इतराती, बलखाती, मतवाली सी मैं
चट्टानों से टकराऊ
बाधाओ से भीड़ जाऊ
अंजना डगर अंजना सफर
मिलती मिलाती सबसे पर कही न मेरा बसर
फिर तुम आये तो एहसास हुआ
जीवन में थी कुछ कमी इसका आभास हुआ
शांत हुई मैं धीर हुई
मुस्कुराती मेरी तिर हुई
तुम्हें अर्पित जीवन ये सारा
हुई विलीन फिर सागर में आज एक धारा ।
इतराती, बलखाती, मतवाली सी मैं
चट्टानों से टकराऊ
बाधाओ से भीड़ जाऊ
अंजना डगर अंजना सफर
मिलती मिलाती सबसे पर कही न मेरा बसर
फिर तुम आये तो एहसास हुआ
जीवन में थी कुछ कमी इसका आभास हुआ
शांत हुई मैं धीर हुई
मुस्कुराती मेरी तिर हुई
तुम्हें अर्पित जीवन ये सारा
हुई विलीन फिर सागर में आज एक धारा ।
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