सोचु मैं -
क्यों कभी कभी ये शाम
उदास कर जाती है
आँखों में सपनो के जगह
नमी भर जाती है
सोचु मैं-
क्यों कभी कभी ये वक्त
थम सी जाती है
ज़ख़्मो को खोल कर
किस्से पुराने दुहराती है
सोचु मैं-
क्यों कभी कभी ये साँसे
बोझ से लगती है
तोर पिंजरा जीवन का
रूह क्यों नहीं उर जाती है ...सोल
क्यों कभी कभी ये शाम
उदास कर जाती है
आँखों में सपनो के जगह
नमी भर जाती है
सोचु मैं-
क्यों कभी कभी ये वक्त
थम सी जाती है
ज़ख़्मो को खोल कर
किस्से पुराने दुहराती है
सोचु मैं-
क्यों कभी कभी ये साँसे
बोझ से लगती है
तोर पिंजरा जीवन का
रूह क्यों नहीं उर जाती है ...सोल
No comments:
Post a Comment