आज जब आपने घर को
रोशनी में नहाते पाया
तो न जाने किन किन ख़यालों में
खुद को खोया पाया ...
न जाने सरहदों पे कितने दिप बुझते है
हमारे इन दियों के खातिर
न जाने कितने घर खामोश है गुमसुम है
वतन के किलकारियों के खातिर
उन अंजान गुमनाम वीरों के नाम
एक दीप ओर आज हमने जलाई है
क्योंकि जानते है -
हरपल जो आज़ादी की साँस लेते है हम
इसकी कीमत उन्होंने चुकाई है ...
रोशनी में नहाते पाया
तो न जाने किन किन ख़यालों में
खुद को खोया पाया ...
न जाने सरहदों पे कितने दिप बुझते है
हमारे इन दियों के खातिर
न जाने कितने घर खामोश है गुमसुम है
वतन के किलकारियों के खातिर
उन अंजान गुमनाम वीरों के नाम
एक दीप ओर आज हमने जलाई है
क्योंकि जानते है -
हरपल जो आज़ादी की साँस लेते है हम
इसकी कीमत उन्होंने चुकाई है ...
No comments:
Post a Comment