न जाने क्यों
अब उनसे पहले सी बात नहीं होती
कल महफिलों में आँखों आँखों होते थे इशारे
आज तन्हाइयों में भी वो शरारतें नहीं होती
कल बेबाग उनके कमरे में घूस जाते थे
आज उनके माकन तक में रखने को कदम हिम्मत नहीं होती
वो जो कभी मांगते थे हर आंसू का हिसाब हमसे
आज दो पल हमारे संग मुस्कुराने की उन्हें फुर्सत नहीं होती
उनके वो इशारे वो शरारतें है आज भी पहले से
बस अब उनकी नज़र ए करम हम पर नहीं होती
खत का मजमून बेशक आज भी वही है
बस नाम लिफाफे पर अब हमारी नहीं होती
कल तक जो दिल पलकों पर था अब ठोकरों पर है
अब हमारे दिल ए हाल पर उनकी तवज्जो नहीं होती
हमसे ना पूछो अब उनके दिल का पता
अब उनकी गलियों में हमारी गुजर बसर नहीं होती... #mg
बहुत बढिया लिखती है आप 👌
ReplyDeleteआभार 🙏
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