तेरे जाने के बाद भी मैं वही रुकी थी
दो कदम चलके तू पलटा था
शायद मुझे आखरी बार निहारा था
उसके बाद भी मैं वही रुकी थी
जब सारा जहां निस्तब्ध था
और सिर्फ टिक टिक करती घड़ी की सूईया
मेरे धड़कनो के साथ ताल मिला रहीं थी
मैं वही रुकी थी
सारी रात साथ देकर शम्मा ने
जब आखिरी सांस भरी थी
मैं वही रुकी थी
जब भोर ने दस्तक दी
और रूह ने जिस्म को कह दिया अलविदा
तब भी मैं वही रुकी थी
जिस्म जलकर खाक हुआ
साथ तेरे लौट के आने की वजह भी
पर एक बारी आकर तो देख जाता
जिस देहलीज़ पर तू छोड़ गया था
तब से मैं वही रुकी थी... 💞
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