नाजुक शाखों पर दाव लगाया
मजबूत जड़ो को भूल गए
कुछ कागज़ के फूलों की चाह में
आस्मा भरी तारों को भूल गए
सबकी मनकी करते करते
अपनी मुस्कान जाने कहा रख भूल गए
फिर जी हुजूरी में इतना डूबे
अपनी उड़न की भी ताकत भूल गए
वक़्त वक़्त की बात है
गैरों की महफ़िल भाइ तो आपनो को भूल गए
चार दिन की चांदनी में यू खोए
के फिर अँधेरी रात है तुम भूल गए... #mg
No comments:
Post a Comment