ये ज़िन्दगी
तु जानती हैं न
तुझसे कभी हारे नहीं है हम
पर अब थक गए है
बचपन से वहीं खेल खेलते खेलते
कभी खुशी कभी गम ...
हम बड़े हो गए हैं
तुम भी बड़ी हो जाओ
कहते कहते थक गए है हम
अब छोड़ो पहेलिया बुझना
पुराने गमों को खुरेदना
वैसे भी साथ अपना रह गया है कम ...
चलो जो बचे दिन है
उसमें कुछ रंग भरते हैं
कुछ काले सफ़ेद करते है कम
बिछड़ना तो है ही कल
तो क्यों न एक दूजे के हो जाए
और आपने आज को यादगार बना जाए हम ... 💞
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