ज़िन्दगी आज भी गुजर रही हैं कल सी
बस शब्दों से उसे सजाने लगे हैं आजकल
ज़ज्बातों को कई सदियों से रोके हुए थे पलकों पे
कुछ अश्क, कुछ मुस्कुराहटों पे लुटाने लगे हैं आजकल
जमाने की सुनते और करते रहें
अपना हाले दिल सुनने सुनाने लगे हैं आजकल
दिलपे सज़ा रखा था अपनों के दिए कुछ ज़ख्मों को
उन्हें मिटाने की इज़ाज़त वक़्त को दे दी है हमने आजकल
जाग के काटते थे राते बेकरार होकर अक्सर
बेफिक्र वाली नींद, हमें भी आने लगी हैं आजकल
हर शेय से मुस्कुराके मिलते हैं आज भी हम पहले से
बस गले लगाने की रीत छोड़ चुके हैं आजकल
परियों की कहानियों पे आज भी यकीन है इस दिल को
पर गुलाब संग कांटे भी होते हैं ये समझने लगे हैं आजकल ...