Tuesday, November 8, 2022

154# माँ...


मेरी बात आज फिर तुम रखोगी ना माँ 
अपनी छाँव में सदा मुझे रखोगी ना माँ  

कल उंगलियाँ थाम चलना सिखाया था
आज सर पे हाथ रख राह दिखाओगी ना माँ

ओझल आंखों से हो, जिंदगी से ना होना 
इतनी सी बात तो मेरी मानोगी ना माँ

इस पार मैं जैसे तेरी यादों को जी रही हूं 
उस पार तुम भी मुझे याद रखती हो ना मां

मेरे दिल की हर अनकही समझ जाती हो 
तुम बिन कितनी 'तन्हा' हू जानती हो ना माँ 

जानती हूं तुम्हें रोकना अब मेरे बस में नहीं 
पर जब भी याद करें पास आओगी ना माँ ... 💞

Sunday, November 6, 2022

153# वो ज़माने याद आए... (poem )

आज उनसे हुई जो मुलाकात 
जाने कितने फसाने याद आए 
वो यू मुस्कुरा कर मिले
जीने के सारे बहाने याद आए 

बजी साईकिल की घंटियां 
जवानी के सारे इशारे याद आए 
कॉफी के सिप पर 
कितने किस्से पुराने याद आए 

देहलीज़ से लौट गई जो 
वो मौसम बहारे याद आए 
शर्मा के पलके झुकाई तो
बदलते सारे जमाने याद आए 

दिल का शैलाब आंखों तक आकर माना
जो सारे घाव पुरानी याद आए 
बस इतनी सी ही तो कभी चाहत थी 
हम भी उन्हें किसी बहाने याद आए

तन्हा आज तन्हा ही खुश है
जो बेहाल जहाँ के सारे दीवाने याद आए
मुस्कुरा कर लौटे उनके कूचे से आज 
जो टूटे दिलों के जमाने याद आए  ....  

Saturday, November 5, 2022

152# धीरे धीरे...

जैसे घुलती शाम रात में धीरे-धीरे
तुम घुल जाओ मेरे बात में धीरे-धीरे

बुनने लगा दिल एक हसीन ख़्वाब
घुला इश्क़ जो मुलाकात में धीरे-धीरे

तेरा रखना कदम दिल आंगन में
छाती लालिमा प्रभात में धीरे-धीरे

आप से तुम तक का सफर 
तय कर लेंगे साथ में धीरे-धीरे

जाने कब बन गए तुम हमसफर 
इस 'तनहा' ए हयात में धीरे-धीरे



Friday, November 4, 2022

151# मैं, मैं को खोजती हू ...

कभी बातों में कभी यादों में कभी तस्वीरों में
मैं, मैं को खोजती हूं -
वो मुस्कुराती आंखें वह खिलखिलाते लब
वो चेहरे का नूर खोजती हू
मैं, मैं को खोजती हूं |
वो पहला पहला प्यार वो इश्क़ की तकरार
लड़कपन के सपनों को खोजती हूं
मैं, मैं को खोजती हूं |
वो कर्ज वो फर्ज वो जिम्मेदारियों में
मैं, मैं को खोजती हूं -
कभी इन्तेज़र में कभी इंतिहान में
कभी इकरार में खोजती हूं 
मैं, मैं को खोजती हूं |
जाने कहां खो गया जाने कब बिछड़ गया
उसे बरसों से खोजती हू
मैं, मैं को खोजती हूं |

155#

ऐ दिल न जाने क्यों तू चटख़ता भी बहुत है
क्या शीशे सा टूटना तुझे भाता भी बहुत है

दामन भी ज़रा बचा के चलना सीख
के तू दामन अश्क में भिगोता भी बहुत है

हर कोई नहीं होता कबिल दिल लगाने के 
फिर तू हर किसी से दिल लगाता भी बहुत है

कल तक उनके लिए सारा खेल ही था नजरों का
शायद तभी आज वो नज़र चुराता भी बहुत है