Thursday, April 2, 2020

86# Anant nindra ...

एक अनंत निंद्रा में सोना चाहती हूं
क्या आपने बाहों का सिरहाना दोगे
कई ख्वाब है बंध इन पलकों में
क्या उन्हें तुम रिहा कर दोगे 

थक सी गई हूं
सबकी उम्मीदो-अरमानों का बोझ ढोते-ढोते
वक़्त की दीवार पर लगी 
किसी खूंटी पे आज तांग दो इन्हें
बस इतना वादा और कर दो
जिसका जो है कल लोटा दोगे उन्हें

ज़िंदगी क्या मिली एक कोहराम मिला
दिल और दिमांग का एक संग्राम मिला
जहाँ फ़र्ज़ ने अरमानों का दाहसंस्कार किया 
अब बस शेष है जो वो राख मिला
क्या इन्हें विसर्जित कर दोगे 
बहुत किया हैं तुमने 
एक आख़री काम और कर दोगे
क्या तुम हमारा तर्पण कर देगे ... 💞

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