Thursday, April 4, 2019

43. पर अब तुम्हें याद नहीं करती ...

तुम्हें भुल पाना आसान नहीं
पर अब तुम्हें याद नहीं करती
आते हो याद जो तीज - त्योहारों पे
सोच तुम्हें अब उदास नहीं होती

एक खालीपन हैं कहीं
पर उसे अब भरने की कोशिश नहीं करती
तुम्हारे नाम की कुर्सी आज भी लगाती हु
पर कोई और बैठे तो उठने को नहीं कहती

आज भी सजती- सवारती हु
पर आँखों में अब वो चमक नहीं आती
जो मुस्कान तुम लाय थे साथ
बहुत ढूंडा पर अब वो कहीं नहीं मिलती

जानती हूं ये इंतेजार अब ख़त्म ना होगा
पर दिल भी मान जाए वो वजह नहीं मिलती
वजह तो अब भी लाखों है जीने के
पर किसी भी वजह में अब वो जिंदगी नहीं मिलती ...

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