जब दिल को दर्द होता हैं तो कागजों पे शब्द आपना रंग निखरता है
पर कभी कभी दर्द इतना बड़ जाता है की उनके भर तले शब्द भी बिखर जाता है ...
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तुम्हारी आँखे साफ कहती हैं रूठते तुम सिर्फ जुबान से हो
रूठ जाएगे जान हमसे जो देखा कभी रूठे तुम दिल से हो ...
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उसकी खामोशी में जो शोर है
बेचैन कर देती है हमें ...
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दो कदम के फासले पे आके अक्सर कहानियाँ रुक जाती है
पहले कदम वो उठाये सोचते सोचते राहे बदल जाती है ...
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काश इक दिन ऐसा भी आये चाँद हो फ़लक पे
और तुम हमारी बाहों में ,और ये वक्त वही ठहर जाए ...
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बहाना कोई ना बनाओ तुम हमसे खफा होने का
तुम्हें चाहने के अलावा कोई गुनाह नहीं हमारा ...
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उम्र थी ही कहाँ वो इश्क़ करने की
पर उसने मुस्कुराके देखा और जवां हो गये...
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सूरज से कहदो कोई अभी लौट जाए
अभी तो आये है वो ख्वाबों में हमारे ...
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तुम तराश लो हमें तो बूथ भी बन जाएंगे
जो साथ चलदो दो कदम तो जी जाएंगे ...
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उनके खत आते तो हैं पर हमारे नाम नहीं
हर आहत पे उठती हैं नज़र उनकीप परहमारे आवाज़ पे नहीं ...💔
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वो दिन हम जिये ही नहीं जिसमें तुम्हारा ज़िक्र नहीं ...
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फिर ये दिल ज़ख्मी हो गया कुछ टुटे ख़्वाब जो चुभ से गए
अश्कों ने की जो दवा-दरू हम रात के बाहों में खो से गए ...
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उनकी खामोशी बेहतर हैज भर के शोर से ...
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तुम चाहो या न चाहो ये रात भी गुजर जाएगी ...
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रात वक़्त पे आ जाती हैं पर नींद नहीं
याद बेवक़्त भी आ जाती हैं पर तुम नहीं ...
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ये नींद न जाने कहाँ चली गईं हैं आज फिर रुठके हमसे
अब हम मनाये भी तो मनाये कैसे ...
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कभी सुबह कभी शाम लिखती हूँ ,
कभी दर्द कभी दावा लिखती हूँ
काश के कभी वो भी समझते
क्यों बातें तमाम लिखती हूँ ...
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पर कभी कभी दर्द इतना बड़ जाता है की उनके भर तले शब्द भी बिखर जाता है ...
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तुम्हारी आँखे साफ कहती हैं रूठते तुम सिर्फ जुबान से हो
रूठ जाएगे जान हमसे जो देखा कभी रूठे तुम दिल से हो ...
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उसकी खामोशी में जो शोर है
बेचैन कर देती है हमें ...
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दो कदम के फासले पे आके अक्सर कहानियाँ रुक जाती है
पहले कदम वो उठाये सोचते सोचते राहे बदल जाती है ...
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काश इक दिन ऐसा भी आये चाँद हो फ़लक पे
और तुम हमारी बाहों में ,और ये वक्त वही ठहर जाए ...
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बहाना कोई ना बनाओ तुम हमसे खफा होने का
तुम्हें चाहने के अलावा कोई गुनाह नहीं हमारा ...
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उम्र थी ही कहाँ वो इश्क़ करने की
पर उसने मुस्कुराके देखा और जवां हो गये...
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सूरज से कहदो कोई अभी लौट जाए
अभी तो आये है वो ख्वाबों में हमारे ...
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तुम तराश लो हमें तो बूथ भी बन जाएंगे
जो साथ चलदो दो कदम तो जी जाएंगे ...
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उनके खत आते तो हैं पर हमारे नाम नहीं
हर आहत पे उठती हैं नज़र उनकीप परहमारे आवाज़ पे नहीं ...💔
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वो दिन हम जिये ही नहीं जिसमें तुम्हारा ज़िक्र नहीं ...
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फिर ये दिल ज़ख्मी हो गया कुछ टुटे ख़्वाब जो चुभ से गए
अश्कों ने की जो दवा-दरू हम रात के बाहों में खो से गए ...
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उनकी खामोशी बेहतर हैज भर के शोर से ...
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तुम चाहो या न चाहो ये रात भी गुजर जाएगी ...
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रात वक़्त पे आ जाती हैं पर नींद नहीं
याद बेवक़्त भी आ जाती हैं पर तुम नहीं ...
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ये नींद न जाने कहाँ चली गईं हैं आज फिर रुठके हमसे
अब हम मनाये भी तो मनाये कैसे ...
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कभी सुबह कभी शाम लिखती हूँ ,
कभी दर्द कभी दावा लिखती हूँ
काश के कभी वो भी समझते
क्यों बातें तमाम लिखती हूँ ...
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