वो इश्क़ ही क्या जो रोज़
लिबास सा बदला जाए
हमारा तो इश्क़ भी कफ़न सा हैं
जो एक बार चढ़े तो फिर न उतारा जाए
मजबूरियों के नाम पे जो रोज़ मरते हैं
उन्हें किस्तों की ज़िंदगी मुबारक
हम एहले वक़्त पर मरने वाले
मौत को हमरा ख़ौफ मुबारक ...
लिबास सा बदला जाए
हमारा तो इश्क़ भी कफ़न सा हैं
जो एक बार चढ़े तो फिर न उतारा जाए
मजबूरियों के नाम पे जो रोज़ मरते हैं
उन्हें किस्तों की ज़िंदगी मुबारक
हम एहले वक़्त पर मरने वाले
मौत को हमरा ख़ौफ मुबारक ...